10 सितंबर ,दिन मंगलवार
महिलाओ के लिए भाद्रपद मास का विशेष महत्व है,क्योंकि इस मास में ही उनके महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार आते हैं। चाहे वह बहुला चौथ हों या हरियालिका तीज या जन्माष्टमी । और संतान साते तो है ही। आज इस इस आर्टिकल में संतान सप्तमी व्रत की ही चर्चा करेंगे।
तो आइए जानते हैं संतान सप्तमी व्रत की विधि ,नियम वा भोग की विधि –
संतान सप्तमी का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता हैं। इस साल 2024 मैं यह त्योहार 10 सितंबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। यह व्रत महिलाओ के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं,क्योंकि यह उनके संतान के लिए हैं।
संतान सप्तमी का व्रत महिलाए अपने संतान के खुशहाल जीवन, दीर्घायु और तरक्की के लिए करती हैं। इस व्रत को पति पत्नी मिलकर करते हैं। जिनके संतान है वो संतान के खुशहाल जीवन के लिए व्रत रखते हैं और जिनके संतान नहीं हैं वो संतान सुख प्राप्त करने के लिए रखते हैं। इस व्रत में एक ही समय भोजन किया जाता हैं।
व्रत में उपयोगी चीजें- शिवजी की प्रतिमा,रोली, चंदन, अक्षत, फूल, जनेऊ, दीपक,घी, बाती,पुआ,मौसमी फल,माता पार्वती जी का श्रृंगार आदि।
संतान सप्तमी व्रत के नियम ही:-
संतान सप्तमी व्रत के प्रमुख नियम निम्न प्रकार हैं –
. इस दिन महिलाए सुबह उठकर स्नान करती और फिर साफ कपड़े पहनकर भगवान शिव जी वा माता पार्वती जी की पूजा करके व्रत का संकल्प करते हैं।
.इसके बाद पूजा स्थान पर चौकी रखकर उस पर भोलेनाथ की प्रतिमा स्थापित करते हैं। और कलश स्थापना करके पूजा प्रारंभ करते हैं।
. कलश में आम के पत्ते वा नारियल रखते हैं। फिर गाय के घी का दीपक जलाकर शिव जी को स्नान कराते हैं। इसके बाद शिव जी को चंदन, रोली,फूल, अक्षत,जनेऊ ,पान, सुपारी आदि अर्पित करते हैं।
. भोग के लिए पुआ (आटे में गुड़ मिलाकर पूरी) बनाते हैं।
. फिर कथा सुनते हैं और आरती वा हवन करके पूजा का विसर्जन करते हैं।
. भोजन शाम के समय में ही करते हैं। और भोजन में पुआ ही खाया जाता हैं।
नोट: उपर्युक्त जानकारी केवल सामान्य ज्ञान के लिए हैं और पूजा पाठ अपने कुलगुरु की सलाह से ही करे।